मोदी-शाह का इशारा या फिर हिमाचल राजनीतिक संकट की दहलीज पर खंडा

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हिमाचल सरकार की राजनीतिक स्थिरता पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह से सार्वजनिक मंच से प्रश्न चिन्ह खड़ा कर खलबली मचा दी है। देश के दोनों सर्वोच्च नेताओं की ओर से चुनावी माहौल बनाने के लिए इशारा भर किया है या फिर सरकार खतरे में है। पीएम मोदी ने नाहन और मंडी में सजाए गए राजनीतिक मंच से खुले तौर पर हिमाचल सरकार के गिनती के दिन होने की बात की और समूचे प्रदेश में चर्चा शुरू हो गई। प्रदेश सरकार क्यों सुरक्षित नहीं है, क्या सत्तारूढ़ कांग्रेस में फिर से बिखराव होगा, इस तरह के गंभीर सियासी प्रश्न खड़े हो गए। पीएम मोदी के जाने के एक दिन बाद गृह मंत्री शाह ने फिर से सरकार पर ये कहते हुए चोट कर दी कि ये सरकार तो कुछ दिनों के बाद चली जाएगी।

चालीस विधायकों के प्रचंड बहुमत वाली कांग्रेस सरकार में एक बार अस्थिरता पैदा हाेने के बाद अब धरातल पर सबकुछ सही हो गया है। इस प्रश्न का उत्तर निश्चित तौर पर मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू के पास होना चाहिए। इसके पीछे तर्क ये है कि चुनावी सभाओं में सीएम साफ एलान करते आ रहे हैं कि प्रदेश सरकार को किसी प्रकार का कोई खतरा नहीं है, सरकार अपना पांच साल का कार्यकाल पूरा करेगी। कांग्रेस से बगावत करने वाले छह बर्खास्त विधायकों पर सीएम सुक्खू निशाना साध रहे हैं। इन नेताओं ने प्रदेश की जनता के साथ धोखा किया है। चुनाव प्रचार के दौरान कांग्रेस व भाजपा नेताओं की ओर से लगाए जा रहे आरोप-प्रत्यारोपों के बीच में विधानसभा का अंक गणित चार जून को दर्पण की तरह साफ हो जाएगा। 40 सदस्यों वाली कांग्रेस 34 विधायकों तक रह गई है, भाजपा के पास 25 विधायक हैं और बर्खास्त किए गए 6 विधायकों के विधानसभा क्षेत्रों में विधानसभा उपचुनाव हो रहे हैं। विधानसभा से त्याग पत्र दे चुके 3 निर्दलीय विधायकों का त्याग पत्र किसी भी समय स्वीकार किया जाएगा। 6 संसदीय सचिवों की नियुक्ति पर उच्च न्यायालय में सुनवाई चल रही है। ऐसे में कांग्रेस सरकार राजनीतिक तौर पर सुरक्षित नहीं है।

कांग्रेस में दूसरा बिखराव होगा?

राजनीति की समझ रखने वालों का मत है कि कांग्रेस में दूसरा बिखराव होगा। इसका उत्तर दिया जा रहा है कि चार जून को लोकसभा चुनाव के परिणाम में छुपा हुआ है। उस दिन दोपहर तक राष्ट्रीय राजनीति की तस्वीर साफ होते ही प्रदेश में राजनीतिक हलचल शुरू होगी। कांग्रेस के भीतर से ये बात उठी है कि चालीस विधायकों के प्रचंड बहुमत को मुख्यमंत्री सुक्खू संभाल नहीं पाए। मुख्यमंत्री और विधायकों में दूरियां बनी हैं, इसमें सरकार में बैठे मंत्री भी अधिक खुश नहीं है, तो विधायकों की स्थित दूर से ही समझी जा सकती है। अब यदि कांग्रेस में टुटन होती है तो पांच विधायक आंखें दिखाते हुए जाएंगे।

भाजपा में प्रबंधन नए हाथ में

लोकसभा चुनाव से पहले प्रदेश के भाजपा नेताओं एक बात साफ तौर पर को बतला दी गई थी कि जिम्मेदारी से बाहर सोचने और विचार करने की आवश्यकता न समझे। इसके पीछे बजट सत्र के दौरान 27 फरवरी का घटनाक्रम है, जब सदन के भीतर भाजपा नेताओं की अपरिपक्वता और गलती करने से सरकार गिरने से रह गई। पहले राज्यसभा चुनाव के लिए कांग्रेस के छह विधायकों सुधीर शर्मा, राजेंद्र राणा, इंद्रदत्त लखनपाल, देवेंद्र भुट्टो, चैतन्य शर्मा, रवि ठाकुर ने प्रत्याशी अभिषेक मनु सिंघवी के खिलाफ मतदान किया। अभिषेक मनु सिंघवी राज्यसभा का चुनाव हार गए और छह कांग्रेस विधायकों को वित्त बिल पारित करवाने में सहयोग नहीं करने के चलते बर्खास्त कर पार्टी से बाहर कर दिया था। इस घटनाक्रम में भाजपा नेतृत्व के असफल होने के बाद नवनिर्वाचित राज्यसभा सांसद हर्ष महाजन भाजपा आलाकमान को राजनीतिक प्रबंधक के तौर पर कुशल व्यक्तित्व मिल गया है।

ऐसा तो होता नहीं

प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष प्रतिभा सिंह का ये कथन सांसद निधि बांट कर चुनाव नहीं लड़ा जा सकता है, चुनाव से पहले कांग्रेस का उत्साह तोड़ गया। फिर लोकसभा चुनाव लड़ने के लिए कांग्रेस प्रत्याशियों का चयन लंबे इंतजार के बाद संभव हो पाया। पहली बार विधानसभा चुनाव जीतकर आए आरएस बाली ने तो बाकायदा पत्र जारी करके लाेकसभा चुनाव लड़ने से पल्ला झाड़ा। हमीरपुर सीट से पहले सतपाल रायजादा का नाम चला और फिर पर्दे के पीछे चला गया और अंत में रायजादा के नाम का चयन हुआ।

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