गीता कपूर: अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक के रूप में पीएसयू का नेतृत्व करने वाली पहली महिला

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पन विद्युत परियोजना को विकास के लिए सरकारों के साथ आम आदमी आवश्यक समझे तभी पन विद्युत परियोजनाओं का बेहतर विकास हो सकता है। पूर्ण समर्पण सहित ड्यूटी के प्रति कर्तव्य निभाने से मंजिल को पाया जा सकता है। अपने को धोखा न देकर सही और गलत को स्वीकारने से ही लक्ष्य हासिल किए जा सकते हैं। हर कोई छोटी-छोटी जिंदगी की जंग से हार घुटने टेक देता है जबकि वास्तविकता ये है कि छोटी-छोटी जंग की हार बड़ी जीत की ओर ले जाती है। ये बात भारतीय विद्युत क्षेत्र के भीतर किसी भी हाइड्रो सीपीएएसयू यानी हाइड्रो केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र उद्यम का नेतृत्व करने वाली पहली महिला गीता कपूर अध्यक्ष व प्रबंध निदेशक एसजेवीएन ने दैनिक जागरण संवाददाता यादवेन्द्र शर्मा के साथ विशेष बातचीत के दौरान कही। गीता कपूर शिमला से संबंध रखती हैं और उनकी शिक्षा उन्हाेंने इस दौरान अपनी उपलब्धी के साथ अपनी प्राथमिकताओं को साझा किया। प्रस्तुत है उनसे बातचीत के मुख्य अंश।

गीता कपूर का बचपन और शिक्षा

08 अप्रैल, 1964 को हिमाचल प्रदेश के शिमला में जन्मी गीता कपूर ने लोरेटो कान्वेंट तारा हाल स्कूल शिमला से शिक्षा आरंभ की।वर्ष 1984 में सेंट बीड्स कालेज शिमला से विज्ञान में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी बिजनेस स्कूल शिमला की पूर्व छात्रा रहीं 1986 में मानव संसाधन प्रबंधन में विशेषज्ञता के साथ बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन में मास्टर डिग्री हासिल की।वर्ष 1992 में अधिकारी (कार्मिक) के रूप में एसजेवीएन में अपनी यात्रा आरंभ की।

इस मुकाम पर पहुंचने के लिए किसे श्रेय देती हैं और क्या प्राथमिकताएं रहेंगी

यहां तक मैं उस भगवान की आशीर्वाद, अपने स्वजनों व वरिष्ठ के सहयोग से पहुंची हूं।जिंदगी की छोटी-छोटी जंग के आगे घुटने टेकने और हार से सबक लेकर अपनी प्राथमिकताओं को पूर्ण समर्पण और ड्यूटी के प्रति कर्तव्य को निभाने से सब हासिल किया जा सकता है। अपनी जिम्मेदारियों से मुंह नहीं मोड़ना पड़ता घर, समाज और अपने कार्यों में तालमेल स्थापित करना पड़ता है। एसजेवीएन को ऊंचाइयों पर पहुंचाना है जो निर्धारित लक्ष्य है।

महिलाओं को कुछ ज्यादा कठिनाइयां आती हैं आप का यहां तक का सफर कैसा रहा

कठिनाइयां बहुत आई और महिलाओं को तो बहुत कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। महिला होने के नाते बहुत कुछ सुनने को मिलता है लेकिन आवश्यकता है कि उसके लिए बहरे बन जाओ और जो आवश्यक है उसे सुनो और अपने लक्ष्य को सामने रखो।मैंने अपनी सास और मां दोनों बीमार थी दोनों को एक ही घर में सेवा करने के साथ कार्यालय के काम में आड़े नहीं आना दिया।पति और पिरवार का पूर्ण सहयोग रहा है जो आज इस मुकाम पी पहुंची हूं।

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