ऊना क्षेत्रीय अस्पताल में फार्मेसी दुकान के आवंटन में वित्तीय अनियमितताओं के खिलाफ कार्रवाई हो- उच्च न्यायालय

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आज हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय ने क्षेत्रीय अस्पताल ऊना के परिसर में फार्मेसी दुकान के आबंटन में वित्तीय अनियमितताओं से संबंधित मामले में हिमाचल प्रदेश सरकार के मुख्य सचिव को चिकित्सा अधीक्षक-सह-सदस्य सचिव, रोगी कल्याण समिति, ऊना और मुख्य चिकित्सा अधिकारी-सह- सदस्य, रोगी कल्याण समिति, ऊना  खिलाफ कानून का उल्लंघन करने और विश्वास भंग करने के संबंध में उन पर कार्यवाही करने के दिशा निर्देश दिए। उपरोक्त सभी समितियों व व्यक्तियों पर वित्तीय अनियमितताओं के साथ-साथ उनके द्वारा जो भी कार्य विश्वास‌ भंग तथा भारतीय दंड संहिता के अंतर्गत अन्य धाराएं शामिल है।

ऊना डिस्ट्रिक्ट केमिस्ट्स एंड ड्रगिस्ट्स एलायंस (यूडीसीडीए), द्वारा दायर एक रिट याचिका पर मुख्य न्यायाधीश रवि मलीमठ और न्यायमूर्ति ज्योत्सना रेवाल दुआ की खंडपीठ ने आदेश जारी किए। याचिका में याचिकाकर्ताओं के द्वारा यह आरोप लगाया गया था कि रोगी कल्याण समिति द्वारा वर्ष 2017 में नोटिस जारी कर बोलियां बुलाकर क्षेत्रीय अस्पताल ऊना के परिसर में एक लाख के मासिक किराए पर एक फार्मेसी दुकान का आवंटन किया था और 3 वर्ष पश्चात इसमें 10% की वृद्धि व 2 लाख सुरक्षा राशि जमा की जानी थी। लेकिन तीन साल बाद 18-03-2020 को दुकान का आवंटन 9,600/- रुपये के मासिक किराए पर किया गया है, किराए में वृद्धि के लिए कोई प्रावधान नहीं है और सबसे बढ़कर, एक ऐसे व्यक्ति को, जो फार्मासिस्ट भी नहीं है । याचिकाकर्ता ने आरोप लगाया है कि उन्होंने इस संबंध में माननीय मुख्यमंत्री, हिमाचल प्रदेश, सचिव (स्वास्थ्य), हिमाचल प्रदेश सरकार और निदेशक स्वास्थ्य सेवा, हिमाचल प्रदेश को अभ्यावेदन दायर किया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई। उनकी केवल यही मांग है कि 18-03-2020  के पत्र के माध्यम से जारी आबंटन को खारिज किया जाए, जिसमें आधिकारिक उत्तरदाताओं को संबंधित दुकान के आवंटन के लिए उचित प्रक्रिया का पालन करने का निर्देश दिया गया है।

न्यायलय का कहना है कि सरकार ने जानबूझकर निविदा के प्रकाशन की प्रक्रिया में कोताही बरती। जबकि इतने उच्च मूल्य की निविदा के लिए प्रकाशन को उचित कवरेज देना सरकार की मौलिक जिम्मेदारी थी ताकि अधिक से अधिक उच्च बोलीदाता इसमें अपनी भागीदारी पेश करे, जिससे सरकार को भी उत्तम दर प्राप्त हो। अदालत ने कहा कि यह न केवल उनके द्वारा की गई एक त्रुटि है, बल्कि एक वित्तीय अनियमितता और एक प्रक्रियात्मक उल्लंघन का एक जानबूझकर किया गया कार्य है जिसके कारण न्याय का गर्भपात हुआ है।

याचिका को स्वीकार करते हुए, अदालत ने निविदा के पुरस्कार को रद्द कर दिया और प्रतिवादी मुनीश कुमार को 20 अगस्त को या उससे पहले उपायुक्त, ऊना को खाली कब्जा सौंपने का निर्देश दिया। कोर्ट ने यह भी निर्देश दिया कि अब से प्रतिवादी, यानी चिकित्सा अधीक्षक-सह-  सदस्य सचिव, रोगी कल्याण समिति, ऊना और मुख्य चिकित्सा अधिकारी-सह-सदस्य, रोगी कल्याण समिति, ऊना किसी भी तरह से किसी भी वित्तीय मामले से नहीं निपटेंगे और इन उत्तरदाताओं के कामकाज का संचालन उपायुक्त, ऊना द्वारा किया जाएगा।  जब तक जांच और आपराधिक कार्यवाही पूरी नहीं हो जाती।

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