एक समय था कि दूसरे राज्यों से संबंध रखने वाले निवेशक उद्योग स्थापित करने में अधिक रूचि लेते थे। पिछले दो वर्षों में ऐसा देखा गया कि निवेश तो आया, लेकिन पर्यटन क्षेत्र तक सीमित होकर रह गया। प्रदेश से बाहर के लोगों को होम स्टे चलाने में अधिक मुनाफा नजर आया। जिसके परिणाम स्वरूप होम स्टे, वेलनेस केंद्र व रिजार्ट निर्माण में अधिक दिलचस्पी दिखी। बाहरी राज्यों के लोगों द्वारा खोले गए होम स्टे और बेड एंड ब्रेकफास्ट (बीएंडबी) इकाइयां अधिक सुविधायुक्त होने के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में पुराने घरों में बनाए गए होम स्टे तुलनात्मक दृष्टि से कमतर हैं। प्रदेश में दो साल में भू-राजस्व अधिनियम की धारा-118 के तहत 950 सौदे हुए हैं। सरकार के अनुसार धारा-118 के तहत 1320 आवेदन आए, जिनमें से 950 को स्वीकृति दी गई है। प्रदेश में 3877.98 करोड़ का रुपये का निवेश प्रस्तावित था, अभी तक वास्तविक निवेश 302.33 करोड़ का हुआ है। ज्यादातर जमीनें पर्यटन व्यवसाय के लिए ली गई हैं। प्रदेश सरकार के समक्ष जब इस तरह की जानकारी सामने आई कि प्रदेश से बाहर के लोगों द्वारा होम स्टे योजना का नियमों के विपरीत लाभ उठाया जा रहा है। तो सरकार ने गैर हिमाचलियों को बहुत अधिक शुल्क के दायरे में लाया गया है। आवेदनों की संख्या को देखते हुए धारा-118 के तहत जमीन खरीदने के लिए आवेदन करने वालों की संख्या में वृद्धि हुई है। लेकिन सरकार द्वारा कई तरह के पहलुओं की जांच करने के बाद ही निवेश संबंधी अनुमति प्रदान की जा रही है।
2017 में वीरभद्र सरकार का एक निर्णय
वीरभद्र सरकार ने धारा -118 में एक निर्णय किया। जिसमें धार्मिक ट्रस्टों को जमीन देने का अधिकार दिया गया था। इसके तहत 8 धार्मिक ट्रस्टों को जमीन दी गई थी। जिनमें पदम संभव गोंपा कमेटी, भुंतर, भगवान श्रीलक्ष्मी नारायण धाम ट्रस्ट और अन्य शामिल हैं।
धारा-118 के महत्व
धारा-118 के तहत उद्योगों को भी स्वीकृति दी जाती है, लेकिन इसका उपयोग होम स्टे और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों के लिए नहीं किया जा सकता है। सरकार को शिकायतें मिली हैं कि बाहरी राज्यों के लोग धारा-118 के तहत जमीन खरीदकर उसका उपयोग होम स्टे और अन्य व्यावसायिक गतिविधियों के लिए कर रहे हैं, जो कि नियमों का उल्लंघन है। धारा-118 का उद्देश्य स्थानीय लोगों के हितों की रक्षा करना है और हिमाचल प्रदेश की कृषि भूमि को संरक्षित रखना है। धारा-118 को लेकर हिमाचल प्रदेश में विवाद रहा है, जिसमें विपक्षी दल इसे बदलने की मांग करते रहे हैं।



