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सरकार ने वेतन और पेंशन के लिए केंद्रीय वित्त मंत्रालय से सहायता मांगी

हिमाचल प्रदेश सरकार ने ऋण की सीमा बढ़ाने के लिए केंद्र सरकार को पत्र लिखा है। वर्तमान वित्त वर्ष की अंतिम तिमाही के लिए केंद्र सरकार राज्य को ऋण उठाने की अनुमति प्रदान करे। इस संबंध में केंद्रीय वित्त मंत्रालय के साथ किए गए पत्राचार को लेकर अभी राज्य सरकार को कोई सार्थक उत्तर प्राप्त नहीं हुआ है। प्रदेश सरकार दिसंबर माह तक 6700 करोड़ का ऋण ले चुकी है और मार्च तक सामान्य तौर पर देनदारियां चलाने के लिए 2800 करोड़ की धनराशि अपेक्षित रहेगी। ऐसे में इस वित्तीय वर्ष की अंतिम तिमाही में कर्मचारियों के लिए वेतन व पेंशन जुटाना प्रदेश सरकार के समक्ष चुनौती है। इसके पीछे कारण यह है कि केंद्र सरकार ने 6200 करोड़ रुपये ऋण की सीमा तय की थी।

यह सीमा पूरा होने के बाद दिसंबर में 500 करोड़ रुपये और ऋण की अनुमति दी गई थी। प्रदेश सरकार ने केंद्र को पत्र लिखकर ऋण लेने की और अनुमति मांगी है। इस पत्र में राजस्व घाटा अनुदान (आरडीजी) की घटती धनराशि व जीएसटी की गैप फंडिंग बंद होने व एनपीएस का शेयर जारी न होने का तर्क दिया गया है। कोई समाधान न होने पर प्रदेश सरकार को जनवरी से मार्च तक का वेतन और पेंशन का भुगतान करने के लिए अन्य विकल्पों का सहारा लेना पड़ सकता है।

मासिक देनदारियों में मूलधन चुकाना भी शामिल

प्रदेश सरकार को हर महीने चार तरह की देनदारियों का वहन करना पड़ता है, इन देनदारियों को किसी भी तरह से नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। जिसमें कर्मचारियों का मासिक वेतन, पेंशनरों की मासिक पेंशन और ऋण के ब्याज और मूलधन का भुगतान करना। कर्मचारियों के वेतन के लिए 1200 करोड़, पेंशनरों की पेंशन के लिए 800 करोड़, ऋण के ब्याज के तौर पर 500 करोड़ और कुल ऋण का मूलधन चुकाने के लिए 300 करोड़ चाहिए। 2800 करोड़ की धनराशि के बाद विकास कार्यों के लिए पर्याप्त बजट चाहिए।

ये तर्क दिए गए हैं

प्रदेश सरकार की ओर से किए जा रहे पत्राचार में तर्क दिया गया है कि 2021 में राजस्व घाटा अनुदान धनराशि करीब 11000 करोड़ थी, जोकि पांचवें वर्ष घटकर 3257 करोड़ रुपये रह जाएगी। इसके अतिरिक्त जीएसटी मुआवजा जून, 2022 में बंद होने से 2500 से 3000 करोड़ की धनराशि का नुकसान हुआ है।

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