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हिमाचल राज्यत्व दिवस: पूर्व मुख्यमंत्रियों की पहचान

डा. परमार ने रेखांकित किया था हिमाचल

हिमाचल निर्माता डा. वाइएस परमार ने पहाड़ी राज्य हिमाचल को कृषि, बागवानी, जल विद्युत और पर्यटन के आधार स्तंभों पर खड़ा किया था। परमार चाहते थे कि प्रदेश की आबोहवा कभी दूषित न हो, इसके लिए पहाड़ी लोगों के लिए कृषि ही मुख्य व्यवसाय रहे। इसके साथ-साथ बागवानी राज्य की नींव उनके समय में ही रखी गई थी। यहां के लोग फलों का उत्पादन करें और पर्यटन को प्रदेश की तीसरी आर्थिकी के तौर पर जोड़ा था। प्रदेश से सतलुज, ब्यास सहित कई नदियों का उद्गम होता है, ऐसे में पहाड़ों से बहने वाले पानी का उपयोग जल विद्युत परियोजनाओं का निर्माण करके किया जा सकता है। प्रदेश के लोगों के भोलेपन को उन्होंने समय रहते भांप लिया था और यहां के लोगों से दूसरे राज्यों के लोग भूमि न खरीद सके, इसके लिए डा. परमार भू-राजस्व की धारा-118 लेकर आए थे। डा. परमार के सपनों की संरचना से अब तक की सरकारें इधर-उधर भटकने का साहस नहीं कर पाई है। प्रदेश के लोग डा. परमार के रोडमैप पर ही चल रहे हैं।

शांता कुमार पानी वाले मुख्यमंत्री

पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार की पहचान पानी वाले मुख्यमंत्री के तौर पर होती है। उनके प्रयास थे कि प्रदेश के लोगों को पानी घर-द्वार पर मिलना चाहिए। तब तक पानी की ढुलाई की जिम्मेदारी घर की महिलाओं की होती थी, जोकि नदी, नालों, खड्डों, कुंओं और बावडियों से पानी लेकर आती थीं। शांता कुमार ने अपने पहले कार्यकाल में ही पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए हैंडपंप लगाने का काम शुरू किया था, बड़े पैमाने पर नदियों से पानी उठाने की योजनाएं तैयार की और ग्रामीण क्षेत्रों की पेयजल की समस्या का समाधान निकाला। ग्रामीण क्षेत्रों में पेयजल संकट दूर करने के प्रयास करने के लिए शांता कुमार महिलाओं में लोकप्रिय हुए थे। शांता कुमार का बतौर मुख्यमंत्री भले ही सीमित कार्यकाल रहा हो, लेकिन प्रदेश के जनमानस पर उन्होंने उच्च मूल्यों की राजनीतिक छाप छोड़ी।

सड़क वाले मुख्यमंत्री रहे धूमल

प्रदेश में जहां पेयजल आपूर्ति की विकराल समस्या का समाधान करने का श्रेय शांता कुमार को जाता है, वहीं दूसरी ओर भाजपा की ओर से सत्ता संभालने वाले दूसरे मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल थे। पहले कार्यकाल में धूमल ने प्रदेश के लोगों की पीठ से बोझा उतारने का संकल्प लिया और राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों तक सड़कें पहुंचाने का बीड़ा उठाया था। पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के समक्ष सड़क निर्माण का विषय बार-बार उठाया। संयोग देखिये कि उस दौरान ही केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना शुरू की और जहां कभी सड़क पहुंचने की किसी ने कल्पना नहीं की थी, वहां पर सड़क पहुंची। धूमल ने दूसरे कार्यकाल में भी सड़क निर्माण को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा और सड़क निर्माण से लोगों को यातायात की सुविधा के साथ कृषि उपज मंडियों तक पहुंचाने में मदद मिली।

चहुंमुखी विकास का नाम वीरभद्र

प्रदेश का चहुंमुखी विकास करने का श्रेय वीरभद्र सिंह को जाता है। वीरभद्र सिंह को आधुनिक हिमाचल का निर्माता भी कहा जाता है। अपने छह कार्यकाल के दौरान वीरभद्र सिंह ने आधारभूत ढांचागत निर्माण को अधिमान दिया। शिक्षा प्राप्त करने के लिए लंबी यात्रा करके स्कूल पहुंचने की समस्या का समाधान हुआ था। स्कूल अधिक दूरी पर होने के कारण बालिकाओं को शिक्षा के हक से वंचित रहना पड़ता था, कम दूरी पर स्कूल भवन निर्मित होने से बालिकाओं के लिए उच्च शिक्षा प्राप्त करने का अवसर मिलने लगा। एक समय तक प्रदेश में इंदिरा गांधी आयुर्विज्ञान एवं अस्पताल ही प्रदेश के लोगों के लिए उपचार का एकमात्र सहारा था। उनके प्रयासों से टांडा मेडिकल कालेज बना और उसके बाद एक के बाद एक मेडिकल कालेज बनते चले गए। इसी तरह से अन्य सरकारी विभागों में भी भवन निर्माण को प्राथमिकता दी गई।

नई योजनाओं की शुरूआत का सेहरा जयराम को

जयराम ठाकुर का कार्यकाल नई योजनाएं शुरू करने के लिए जाना जाता है। पहले ही बजट में उन्होंने एक नहीं, दो नहीं, दो दर्जन से अधिक नई योजनाओं का दस्तावेजीकरण करके सरकार में बैठे अधिकारियों को नए तरीके से सोचने के लिए मजबूर कर दिया। अन्यथा केंद्रीय योजनाओं से मिलने वाले बजट की आशा ही रहती थी। केंद्र सरकार ने देश के प्रत्येक व्यक्ति को सस्ती स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए आयुष्मान योजना शुरू की। आयुष्मान योजना की शर्तों के दायरे से बाहर रहने वाले प्रदेश के लोगों के लिए हिम केयर योजना शुरू की गई। उज्जवला योजना के दायरे से बाहर रहने वाले गरीब परिवारों के लिए मुख्यमंत्री गृहिणी सुविधा लाकर महिलाओं को चूल्हे के धुएं से छुटकारा दिलाया था। प्रदेश में औद्योगिक निवेश को आकर्षित करने के लिए पहली बार राइजिंग इनवेस्टर मीट का आयोजन किया गया था। देश के नामी उद्योगपतियों को देवभूमि में बुलाकर प्रदेश की नई तस्वरी दिखाई थी।

सुक्खू की लकीर से हटकर निर्णय लेने की पहचान बनी

प्रदेश में आपदा आना कोई नई बात नहीं रही है और आपदा प्रभावितों को फौरी तौर पर मिलने वाली मुआवजा धनराशि दस हजार को किनारे रखते हुए पचास हजार रुपये का प्रविधान किया। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने साहसिक निर्णय लेकर प्रशासन की ढर्रे की सोच को बदला। प्रदेश ने इतिहास में 2023 में अभूतपूर्व प्राकृतिक आपदा और बाढ़ का सामना किया था। सरकारी व निजी संपत्ति को करीब पंद्रह हजार करोड़ का नुकसान हुआ था। पूरी तरह से प्रभावितों को एक लाख रुपये की सहायता देने की व्यवस्था को बदला और सात लाख रुपये की तत्काल धनराशि देने की शुरूआत की। पटवारी के चक्रव्यूह से कोई बच नहीं सकता है और आज तक लोग राजस्व कार्यों के लिए परेशान रहते रहे थे। ऐसा पहली बार हुआ कि इंतकाल और निशानदेही के लंबित पड़े मामलों का निपटारा सुनिश्चित किया। डेढ़ लाख से अधिक इंतकाल हुए और निशानदेही। इन कार्याें के लिए समय निर्धारित किया गया है, पटवारी से लेकर तहसीलदार की बहानेबाजी को खत्म किया गया।

 

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