बल्क ड्रग पार्क निर्माण में देरी के कारण लागत 94 करोड़ रुपये बढ़ गई है। केंद्र सरकार के साथ करार के तहत पार्क की लागत बढ़ने की स्थिति में पूरा खर्च राज्य सरकार को उठाना होगा। लागत बढ़ने के पीछे कारण ये है कि प्रदेश सरकार डेढ़ साल से पार्क के लिए रणनीतिक साझेदार चयन करने में निर्णय नहीं कर पा रही थी। निजी क्षेत्र की बड़ी कंपनियों ने प्रदेश के ऊना जिला के हरोली में विकसित किए जा रहे पार्क में रणनीतिक साझेदारी के लिए निवेश करने को कोई कंपनी तैयार नहीं थी। ऐसी परिस्थितियाें में सरकार ने स्वयं रणनीतिक साझेदार बनने का निर्णय लिया।
वर्ष 2022 में स्वीकृत हुए बल्क ड्रग पार्क की निर्माण लागत पहले 1923 करोड़ थी, जोकि बढ़कर 2071 करोड़ रुपये हो गई है और राज्य सरकार को 1074.55 करोड़ चुकाने होंगे। एक सप्ताह पहले हिमाचल सरकार ने पार्क में अपने हिस्से के 923 करोड़ रुपये में से 450 करोड़ देने का निर्णय लिया है। शेष धनराशि आने वाले समय में जारी होगी। सरकार आर्थिक संकट से जूझ रही है और ऐसे हालात में पार्क एक वर्ष की एक्सटेंशन के साथ वर्ष 2026 तक बनकर तैयार होता है या नहीं।
फ्लैगशिप प्रोजेक्ट बल्क ड्रग पार्क
बल्क ड्रग पार्क भारत सरकार का फ्लैगशिप प्रोजेक्ट है। केंद्र सरकार ने अक्टूबर, 2022 में देश के तीन राज्यों हिमाचल, गुजरात व आंध्रप्रदेश को बल्क ड्रग पार्क स्वीकृत किए थे। पार्क की आरंभिक लागत 1923 करोड़ थी, जोकि दो साल में औपचारिकताएं पूरी नहीं होने और समयबद्ध होने वाले निर्माण में पिछड़ने के बाद लागत बढ़कर 2071 करोड़ पहुंच गई है। केंद्र सरकार के उर्वरक एवं रसायन मंत्रालय के फार्मास्यूटिकल विभाग की ओर से 996.46 करोड़ की ग्रांट-इन-एड राज्य सरकार को चरणबद्ध प्राप्त होगी।
केंद्र सरकार से पहली किश्त के तौर पर 225 करोड़ प्रदेश सरकार को प्राप्त हो चुके हैं। अब तक प्रदेश सरकार ने 55.54 करोड़ खर्च किए हैं। लागत बढ़ने के बाद हिमाचल सरकार को 1074.55 करोड़ वहन करने होंगे। यदि पार्क का निर्माण अतिरिक्त समयावधि में भी पूरा नहीं होता है तो सभी तरह का बोझ प्रदेश सरकार को उठाना पड़ेगा। 1405 एकड़ में विकसित हो रहे पार्क में 8 हजार करोड़ का निवेश लक्षित है और 15 हजार लोगों को रोजगार के अवसर प्राप्त होंगे।