हिमाचल के मतदाता विधायकों को सांसदी सौंपने से गुरेज करते रहे हैं। प्रदेश के चुनावी इतिहास के आंकड़े इस बात की तस्दीक कर रहे हैं। यूं तो विधायक रहते हुए प्रदेश में कई नेताओं ने लोक सभा के चुनावी रण में किस्मत आजमाई, मगर जीत सिर्फ दो के हाथ लगी। हमीरपुर संसदीय सीट के लिए 2007 में हुए उप चुनाव में प्रौ. धूमल विधायक रहते हुए जीत गए। प्रौ. धूमल ने उप चुनाव में कांग्रेस के राम लाल ठाकुर को पराजित किया था। राम लाल ठाकुर कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में शुमार रहे हैं। ठाकुर 2007 में विधायक थे। दूसरा अपवाद कांगड़ा संसदीय क्षेत्र के सांसद किशन कपूर हैं। कपूर को भाजपा ने 2019 में लोक सभा उम्मीदवार बनाया। उस वक्त वह धर्मशाला के विधायक थे। मगर लोक सभा चुनाव रिकार्ड मतों से जीत गए। 2019 में किशन कपूर के खिलाफ कांग्रेस के पवन काजल उम्मीदवार थे। काजल अब भाजपा के विधायक हैं।
चुनावी आंकड़ों के मुताबिक 2014 में राजेंद्र राणा अनुराग ठाकुर के खिलाफ लोक सभा चुनाव लड़े। राणा 2012 के विधान सभा चुनाव में बतौर निर्दलीय चुन कर आए थे। उन्होंने विधायकी छोड़ कर लोक सभा का चुनाव लड़ा, मगर पराजित हो गए। 1999 में गंगू राम मुसाफिर कांग्रेस विधायक थे। गंगू राम मुसाफिर ने कई सालों तक विधान सभा में पच्छाद का प्रतिनिधित्व किया। 1999 के लोक सभा चुनाव में भाजपा-हिविकां गठबंधन के उम्मीदवार के तौर पर डॉ धनी राम शांडिल शिमला सीट से चुनाव मैदान में थे, मगर विधायक रहते हुए मुसाफिर पराजित हो गए। 2013 में मंडी लोक सभा सीट पर उप चुनाव हुआ। जयराम ठाकुर सिराज से इस दौरान भाजपा विधायक थे। मगर वह प्रतिभा सिंह से उप चुनाव में पराजित हो गए।
बहरहाल 2024 के लोक सभा चुनाव में कांग्रेस ने रणनीति के तहत विक्रमादित्य सिंह व विनोद सुल्तानपुरी को उम्मीदवार बनाया है। विक्रमादित्य सिंह लोक निर्माण मंत्री हैं। विनोद सुल्तानपुरी कसौली से विधायक हैं। दोनों ही युवा नेता हैं। विक्रमादित्य का मुकाबला राजनीति में अनुभवहीन कही जा सकने वाली कंगना से है। इसके विपरीत सुल्तानपुरी का मुकाबला विधान सभा व लोक सभा का अनुभव रखने वाले सुरेश कश्यप से है। मगर चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा यह समय के अंतराल में छिपा है।