भारत में सामुदायिक रेडियो की कहानी इस कहावत का सटीक उदहारण है। सामाजिक लक्ष्यों के प्रति जागरूकता पैदा करने, समुदायों को प्रभावित करने एवं सकारात्मक बदलाव लाने के लिए लोगों की भागीदारी को प्रेरित करने से जुड़ी सामुदायिक रेडियो की क्षमता में ही इसकी सुंदरता निहित है। बिल एंड मेलिंडा गेट्स फाउंडेशन के लिए इप्सोस द्वारा हाल में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि हाथ धोने और सैनिटाइज़र का उपयोग करने के महत्व के बारे में जागरूकता को लेकर जिन जिलों में सामुदायिक रेडियो अभियान चलाया गया था, उनमें कोविड-19 संक्रमण के मामलों में 7.5 प्रतिशत की कमी देखी गयी थी। यह कमी आधार श्रेणी के उन जिलों की तुलना में दर्ज की गयी, जहां उक्त अभियान नहीं चलाया गया था।
यह स्थानीय लोगों की क्षमता बढ़ाने में सामुदायिक रेडियो के प्रभाव को प्रदर्शित करता है, ताकि कई तरह की सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए साथ मिलकर काम किया जा सके। शिक्षा, युवा, स्वास्थ्य और कृषि जैसे विषयों पर सभी प्रकार के उपयोगी कार्यक्रम स्थानीय लोगों द्वारा तैयार किए जा सकते हैं और समुदाय के लाभ के लिए सामुदायिक रेडियो के माध्यम से इन्हें प्रसारित किया जा सकता है। अधिकांश रेडियो कार्यक्रम सहभागी प्रकृति के होते हैं, जिसमें ग्रामीण लोगों को शामिल किया जाता है। सामुदायिक रेडियो की मदद से विकास सूक्ष्म स्तर तक पहुंच सकता है और यह निश्चित रूप से एक व्यापक सामाजिक परिवर्तन ला सकता है।
पिछले आठ वर्षों में, देश में सामुदायिक रेडियो अभियान में तेजी आयी है, क्योंकि 2014 की तुलना में सामुदायिक रेडियो स्टेशनों (सीआरएस) की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है। आज, 356 सीआरएस स्थानीय बोलियों सहित विभिन्न भाषाओं में कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं और समुदायों को अपने विचार व्यक्त करने का अवसर प्रदान कर रहे हैं, जबकि मुख्यधारा की मीडिया में उनकी बात को हमेशा पर्याप्त स्थान या समय नहीं मिल पाता है।
हालांकि, समुदाय ही सीआरएस की सफलता के आधार होते हैं, लेकिन भारत सरकार ने सक्रिय रूप से इनका समर्थन किया है। वित्त वर्ष 2021-26 की अवधि के लिए “भारत में सामुदायिक रेडियो अभियान का समर्थन” नाम से एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना तैयार की गई है। यह ध्यान में रखते हुए कि गैर-लाभकारी संगठनों के पास सीमित संसाधन होते हैं, सामुदायिक रेडियो स्थापित करने के लिए संगठनों को वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है। इसके अलावा, जरूरत पड़ने पर उपकरणों के नवीनीकरण/प्रतिस्थापन के लिए भी सहायता प्रदान की जाती है, जिसमें आपातकालीन अनुदान भी शामिल है। सीआरएस अभियान को बढ़ावा देने और नए व संभावित सीआरएस को विभिन्न तरह की सहायता देने से जुड़ी लीड कम्युनिटी स्टेशन की अवधारणा को वर्ष 2021 में पेश किया गया था। विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से लीड सीआरएस के रूप में कुल 24 सीआर स्टेशनों को चुना गया है। हाल ही में, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने एक ब्रॉडकास्ट सेवा पोर्टल लॉन्च किया है, जहां इच्छुक संगठन सीआरएस अनुमति के लिए ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं। सीआरएस को एआईआर से प्राप्त समाचार और समसामयिक कार्यक्रमों को अपने मूल रूप में या स्थानीय भाषा/बोली में अनुवादित रूप में प्रसारित करने की अनुमति है। राजस्व प्राप्ति को समर्थन देने के लिए, सीआरएस पर विज्ञापन की अधिकतम अवधि भी प्रसारण प्रति घंटे के 5 (पांच) मिनट से बढ़ाकर प्रति घंटे 7 (सात) मिनट कर दी गई है। सभी हितधारकों, नीति निर्माताओं, मीडिया, विभिन्न सरकारी विभागों / मंत्रालयों, संयुक्त राष्ट्र निकायों और सामुदायिक रेडियो स्टेशनों को एक साथ लाने के लिए राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर सामुदायिक रेडियो सम्मेलन आयोजित किए जा रहे हैं। कार्यक्रम निर्माण को प्रोत्साहित करने के लिए प्रतिवर्ष राष्ट्रीय सामुदायिक रेडियो पुरस्कार भी प्रदान किए जा रहे हैं।
इस बात के पर्याप्त उदाहरण मौजूद हैं कि सामाजिक और सामुदायिक कल्याण के लिए एक सक्रिय एजेंट होने के रूप में सीआरएस बहुत प्रभावी होते हैं। डिब्रूगढ़, असम में स्थित, ब्रह्मपुत्र सामुदायिक रेडियो स्टेशन, जिसका लोकप्रिय नाम “रेडियो ब्रह्मपुत्र” है, की स्थापना वर्ष 2015 में उत्तर-पूर्व अध्ययन एवं अनुसंधान केंद्र (सी-एनईएस) द्वारा की गई थी। यह जिलों के वंचित समुदायों के साथ काम करता है; जो चाय बागान, नदी के किनारे और अन्य मुख्य भूमि गांवों में रहते हैं। जनसंख्या संरचना और विविध जातीय समूहों के आधार पर, यह 5 अलग-अलग भाषाओं और बोलियों – असमिया, मिसिंग, सदरी (चाय समुदाय की बोली), हाजोंग, देवरी – में कार्यक्रमों का निर्माण और प्रसारण करता है, जो स्वास्थ्य, शिक्षा, आजीविका, पर्यावरण, आपदा, कृषि, लोक संगीत और संस्कृति से संबंधित मुद्दों पर आधारित होते हैं। यह प्रतिदिन 14 घंटे का प्रसारण करता है। वायनाड जिले के द्वारका में स्थित सामुदायिक रेडियो मटोली, रेडियो और विजुअल मीडिया दोनों में, करियर से जुड़ी आकांक्षाओं को आगे बढ़ाने के क्रम में कई स्थानीय प्रतिभाओं के लिए एक लॉन्च पैड के रूप में उभरा है। जनजातीय संस्कृति और परंपरा को स्थानीय जनजातीय लोगों द्वारा जनजातीय बोली में निर्मित कार्यक्रमों के माध्यम से बढ़ावा दिया जाता है। दूसरी ओर, उड़ीसा में, रेडियो नमस्कार, पुरी जिले के कोणार्क के निकटवर्ती क्षेत्र में स्थित 4 ब्लॉकों (गोप, निमापाड़ा, काकटपुर और अस्तरंगा) के 700 से अधिक गांवों तक पहुंचता है। रेडियो ने इस इलाके के सभी बच्चों की स्कूल में भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक अभियान “चला स्कूल कू जीबा” (चलो स्कूल चलें) शुरू किया है। इन कार्यक्रमों का ऐसा प्रभाव पड़ा है कि स्कूल छोड़ चुके 5 गांवों के सभी छात्र फिर से स्कूल वापस आ गए। सरकारी प्राधिकरण ने इन गांवों को ऐसा क्षेत्र घोषित किया है, जहां किसी भी बच्चे ने स्कूल नहीं छोड़ा (जीरो ड्रॉप आउट जोन) है। हरियाणा के नूंह में, सामुदायिक रेडियो अल्फाज़-ए-मेवात ने कोविड प्रकोप और लॉकडाउन के दौरान शानदार भूमिका निभाई है। इस रेडियो स्टेशन ने बिना किसी व्यवधान के लगातार प्रसारण किया और कोविड रोकथाम और जागरूकता पर सूचना प्रदाता के रूप में काम किया।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं। सीआरएस भारत में प्रभावी हैं, क्योंकि वे अनिवार्य रूप से ‘समुदाय के, समुदाय के लिए और समुदाय द्वारा’ के आदर्श वाक्य के साथ सेवा प्रदान करते हैं। सामुदायिक रेडियो ने देश के ग्रामीण, वंचित और दूरदराज इलाकों में रहने वाले समुदायों के जीवन में विकास और परिवर्तन से जुड़े बदलाव लाने में स्वयं को एक अग्रणी माध्यम के रूप में स्थापित किया है।