हिमाचल प्रदेश के तीन निर्दलीय विधायकों के खिलाफ दल बदल कानून के तहत कार्रवाई किए जाने और उनके त्यागपत्र स्वीकार किए जाने को लेकर अब निर्णय प्रदेश में हो रहे संसदीय व विधानसभा उपचुनाव के परिणाम के बाद आएगा। कोर्ट में मामला लटकने के बाद अब जून के प्रथम सप्ताह तक के लिए मामला लटक गया है। विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने राजस्व मंत्री जगत सिंह नेगी द्वारा दायर पिटीशन यानी याचिका की सुनवाई शनिवार 11 मई को निर्धारित की थी। इसमें तीनों निर्दलीय होशियार सिंह, केएल ठाकुर और आशीष शर्मा को नोटिस देकर बुलाया गया था। तीनों विधायक नहीं आए और न ही उनके द्वारा कोई जवाब दिया गया। याचिका कर्ता की तरफ से कोई मौजूद नहीं था।
विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने पत्रकारों से बातचीत के दौरान कहा कि इस मामले में दोनों पक्ष की तरफ से कोई भी नहीं आया था। विधानसभा चुनाव की व्यस्तता के कारण इसे चुनाव के बाद अंतिम सुनवाई करेंगे। उन्हाेंने कहा कि वह जून के प्रथम सप्ताह में इस संबंध में अंतिम निर्णय दे देंगे। चुनाव की व्यस्तता के कारण दोनों तरफ से आने में दिक्कत है। कुलदीप सिंह पठानिया ने कहा कि उन्हें ये भी जांच करनी है कि उन्होंने स्वेच्छा से त्यागपत्र दिया है या किसी प्रलोभन और दबाव में। विधानसभा अध्यक्ष ने कहा कि 22 मार्च को त्यागपत्र देने के बाद 23 मार्च को भाजपा में शामिल हो गए। जबकि उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं हुआ था। निर्दलीय विधायकों ने ये बात मानी भी है। अभी भी केंद्रीय एजेंसी उनकी सुरक्षा में है। ऐसे में इनके ऊपर दल बदल कानून लगता है और उसी का जवाब इनसे मांगा गया था।
-बिंदल और परमार ने तो आसन पर बैठ कहा था उनका संबंध आरएसएस से
विधानसभा अध्यक्ष कुलदीप सिंह पठानिया ने कहा कि विक्रमादित्य के साथ मंच सांझा किया है और आगे भी करुंगा। पहले कांग्रेस पार्टी के चुनाव चिन्ह पर जीतकर विधानसभा पहुंचा हैं। विधानसभा के अंदर ही सिर्फ अध्यक्ष हैं जबकि बाहर तो है वह एक पार्टी के कार्यकर्ता हैं ऐसे में उनकी शिकायत चुनाव आयोग को भाजपा ने की है उससे वह डरने वाले नहीं है। ओम बिरला भी पहले पार्टी के आदमी है उसके बाद लोकसभा स्पीकर है। ये बात पत्रकारों द्वारा पूछे गए सवाल के जवाब में कही। पठानिया ने कहा कि पूर्व में जो दो विधानसभा अध्यक्ष रहे बिंदल और परमार अध्यक्ष के आसन पर बैठकर कहते थे कि वह आरएसएस से संबंधित हैं। जो पूरी तरह से गलत है। अध्यक्ष के आसन पर बैठे हैं तो किसी संस्था से या राजनीतिक पार्टी से नहीं है। विधानसभा कोई राजनीतिक मंच नहीं है।