हिमाचल प्रदेश में जारी वर्तमान मानसून सत्र में निजी स्कूलों द्वारा अत्यधिक फीस वसूलने का मुद्दा गरमाया हुआ है। छात्र अभिभावक मंच लगातार मांग कर रहा है कि निजी स्कूलों की इस लूटपाट को रोकने के लिए सरकार शीघ्र अति शीघ्र कानून व रेगुलेटरी कमीशन का गठन करे। मंच का यह भी कहना है कि यदि सरकार उनकी इस मांग पर कानून नहीं बनाती तो अभिभावक सड़कों पर उतरकर आंदोलन कर अपना विरोध जाहिर करेंगे।
मंच के राज्य संयोजक विजेंद्र मेहरा,जिला कांगड़ा अध्यक्ष विशाल मेहरा,मंडी अध्यक्ष सुरेश सरवाल,शिमला अध्यक्ष भुवनेश्वर सिंह,बद्दी अध्यक्ष जयंत पाटिल,पालमपुर अध्यक्ष आशीष भारद्वाज,नालागढ़ अध्यक्ष अशोक कुमार,कुल्लू अध्यक्ष पृथ्वी चंद व मनाली अध्यक्ष अतुल राजपूत कहना है यह सब सरकार की निजी स्कूलों के साथ मिलीभगत व सरकार की नाकामी को दर्शाता है। करोना काल में निजी स्कूलों की फीसों को लेकर मनमानी लगातार जारी है और वे ट्यूशन फीस के अतिरिक्त अन्य चार्जेज़ भी छात्रों के अभिभावकों से वसूल किए रहे हैं, जबकि अन्य चार्जेज़ वसूलने का कोई अभिप्राय नहीं बनता क्योंकि अन्य चार्जेस में शामिल कंप्यूटर फीस, स्मार्ट क्लासरूम, केयरज, मिसलेनियस, स्पोर्ट्स आदि का प्रयोग करोना काल में छात्रों के स्कूल ना जाने के कारण बंद है।
लेकिन सरकार के उचित समय पर सही कदम न ले पाने के कारण निजी स्कूलों ने वर्ष 2021 में बड़ी सफाई से 80% से अधिक हिस्से को ट्यूशन फीस में बदल दिया और कई निजी स्कूलों ने 15 से 20% फीस में भी बढ़ोतरी की है। निजी स्कूलों की इस मनमानी का भुगतान अभिभावक कर रहे हैं। अभिभावक जो बेरोजगार है या जिनका रोजगार इस महामारी के कारण छिन गया है, फीस देने में असमर्थ है जिसके कारण उनके बच्चों को ऑनलाइन कक्षाओं से बाहर कर स्कूलों से बाहर निकाल दिया जा रहा है। इसके अतिरिक्त यदि अभिभावक निजी स्कूल की फीस न भर पाने के कारण अपने बच्चे का एडमिशन सरकारी स्कूल में करवाना चाहता है, तो उससे छात्र का माइग्रेशन या स्कूल लीविंग सर्टिफिकेट लेने के लिए निजी स्कूल को 15000 से 25000 रुपए तक का भुगतान करना पड़ रहा है, जो कि सरासर गलत है।

विजेंद्र मेहरा, मंच के संयोजक ने सरकार पर तंज कसते हुए कहा कि सरकार पहले ही कानून का प्रारूप तैयार करने में 3 वर्ष का समय ले चुकी है और सरकार का लगातार अभिभावकों की मांग व सुझाव को अनसुना करना उसकी निजी स्कूलों के साथ मिलीभगत को दर्शाता है। विजेंद्र का कहना है यदि सरकार इस मांग से लगातार इसी तरह भागती रहेगी तो वर्तमान मानसून सत्र में इस पर कानून पारित होना असंभव है।उन्होंने कहा कि निजी स्कूल वर्ष 2014 के मानव संसाधन विकास मंत्रालय व 5 दिसंबर, 2019 के शिक्षा विभाग के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर फीस वसूली कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त 2016 के हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के कानून की भी अवहेलना कर रहे हैं, जिसमें उच्च न्यायालय ने स्पष्ट किया था कि निजी स्कूल सभी तरह के चार्जेज़ पर रोक लगाएं। अतः मौजूदा परिस्थिति को देखते हुए उन्होंने सरकार से पुनः मांग की है कि सरकार उनकी मांग पर विचार करे और फीस, पाठ्यक्रम, प्रवेश आदि के संबंध में कानून व रेगुलेटरी कमीशन का गठन शीघ्र करें।